जब भी भक्तों पे बिपदा पड़ी है तब तब परमात्मा उनकी रक्षा हेतु अवतार लेते हैं। त्रेता युग में राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप में भगवान ने अवतार लिया था।

उक्त विचार कथा व्यास बलराम दास जी ने व्यक्त किया। वे गोल्हौरा में आयोजित श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ में कथा प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चौथे पन में राजा दशरथ के चार पुत्र हुए, जिसमें उनके सबसे प्रिय पुत्र राम व लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा हेतु मुनि विस्वामित्र मांग ले गए। राम लक्ष्मण ने मुनि के यज्ञ की रक्षा करते हुए ताड़का, सुबाहु जैसे राक्षसों का वध किया। वहीं मुनि को धनुष यज्ञ का निमंत्रण मिला। धनुष यज्ञ की रक्षा हेतु दोनों भाइयों को लेकर वे जनकपुर की ओर चल पड़े। रास्ते में शाप वश पाषाण बनी अहिल्या का राम ने उद्धार किया। दोनों भाई मुनि के साथ धनुष यज्ञ में पहुंचकर उसकी रक्षा करते हैं। और धनुष भंग करके राजा जनक की पुत्री सीता से उनका विवाह तो हुआ ही साथ में लक्ष्मण का उर्मिला से, भरत का मांडवी से व शत्रुघ्न का श्रुतिकीर्ति से विवाह हुआ। जनकपुर में महीनों उत्सव मनाया गया। कथा व्यास ने कहा कि गाय, पृथ्वी, मनुष्य, देवता, सन्त की रक्षा व यज्ञ की रक्षा हेतु परमात्मा अवतार लेते हैं। राम रूप में ऐसे परमात्मा को पाकर राजा जनक ही नही पूरे जनकपुर वासी धन्य हो गए। कथा में राम लक्ष्मण की सुंदर झांकी ने लोगों का मन मोह लिया। भजनों व भक्ति गीतों पर खूब जयकारे लगे। उक्त दौरान मुख्य यजमान सन्तराम जायसवाल व गौकरन जायसवाल के अलावा राधेश्याम अग्रहरि, डा. गोविंद मौर्य, भोला, कौशल, शुभांकर, रवि अग्रहरि, रामदेव अर्कवंशी, राजेन्द्र चौधरी, शिवप्रकाश वर्मा, सतीश गौड़, अजय प्रधान, पंकज जायसवाल, दीपक जायसवाल, सरवन सोनी, बलराम गौड़ आदि समेत काफी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।
राकेश त्रिपाठी
