संचार क्रांति – औराताल। नवनिर्मित मनसा देवी मंदिर, मलंग चौराहा कैथोलिया में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन का सत्र भक्ति और ज्ञान से परिपूर्ण रहा। अयोध्या से पधारे प्रसिद्ध कथावाचक सौरभ कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने श्रोताओं को श्रीमद् भागवत महापुराण की महिमा का रसपान कराया।
कथा व्यास जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और तत्वबोध से परिपूर्ण है। इस महापुराण के महात्म्य की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें तीन मुख्य संवाद – नारद और भक्ति संवाद, सनत कुमार और नारद संवाद तथा गोकर्ण और धुंधकारी संवाद के माध्यम से इसकी महिमा का विस्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि पहले संवाद में अर्पण की कथा, दूसरे में समर्पण की कथा और तीसरे में तर्पण की कथा समाहित है।
अर्पण, समर्पण और तर्पण का महत्व शास्त्री जी ने समझाया कि श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार जो कार्य समाज के लिए किया जाए, वह अर्पण है, जो भगवान के लिए किया जाए, वह समर्पण है, और जो पितरों के लिए किया जाए, वह तर्पण कहलाता है। उन्होंने कहा कि जीवन में सत्य का ध्यान करना ही सबसे महत्वपूर्ण है और यही सत्य भगवान कृष्ण का स्वरूप है।
भगवान के 24 अवतारों की व्याख्या कथा के दौरान शास्त्री जी ने भागवत की मंगलाचरण चर्चा की, जिसमें भगवान वेदव्यास द्वारा सत्य का ध्यान किया गया है। उन्होंने श्रोताओं को भगवान के 24 अवतारों की कथा से भी परिचित कराया, जिसमें गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों के आधार पर भागवत महापुराण की व्याख्या की गई है।
राजा परीक्षित के कारण मिली भागवत कथा की सौगात कथा व्यास जी ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग प्रदान करती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं, किंतु भगवान के नियम न तो गलत हो सकते हैं और न ही बदले जा सकते हैं।
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ कथा पंडाल में मुख्य यजमान सहित भारी संख्या में क्षेत्रवासियों की उपस्थिति रही। श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से कथा का श्रवण किया और कथा व्यास जी के प्रवचनों से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया।

