संचार क्रांति – सिद्धार्थ नगर, बांसी। 29 जनवरी 2025 को बांसी माघ मेला एवं प्रदर्शनी ने अपनी 71 वर्ष की अवस्था पूरी कर ली। वर्ष 1954 में स्थापित इस माघ मेला ने बचपन से 71 वर्ष के वृद्धावस्था तक के अपने सफ़र में कई परंपराओं को खो दिया। उत्तरोत्तर विकास की तरफ जाने के बजाय निरंतर गिरावट की तरफ माघ मेला आता जा रहा है। इसका असली जिम्मेदार कौन है इस पर अभी तक किसी ने विचार नहीं किया।
71 वर्ष के वयोवृद्ध माघ मेले के शुरुआती दौर में इस माघ मेला की रौनक कुछ और थी। लोग दूरदराज से इस माघ मेला को देखने आते थे। देश प्रदेश के कोने-कोने से माघ मेला में दुकाने आती थी, जिसे देखने के लिए लोग लालायित रहते थे। जिम्मेदारों की लापरवाही से बाहर से दुकाने अब गिनी चुनी ही आती हैं। क्योंकि माघ मेला के जिम्मेदारों ने निजी स्वार्थ में स्थानीय लोगों को काफी तवज्जो देना शुरू कर दिया। माघ मेला आयोजक नगर पालिका परिषद बांसी के टाउन एरिया के कार्यकाल में तमाम कर्मचारी पहले बाहर जाकर बड़े-बड़े दुकानदारों और शो मैंनो को बांसी माघ मेला में आने के लिए आमंत्रित करते थे। जिससे माघ मेला का रुतबा बढ़ता था। अब कोई भी कर्मचारी किसी बड़े शोमैन और दुकानदार के पास नहीं भेजा जाता। जिसका परिणाम हुआ कि माघ मेला लोकल होकर सिमट गया। माघ मेला में बड़े-बड़े सर्कस, बड़े-बड़े जादूगर तथा अन्य शो मैंन क्यों नहीं आते और अगर कोई नामी गिरामी शो मैंन आया भी, तो वह शोषण का शिकार हो जाता है। इसके पीछे यही मुख्य कारण है की नगर पालिका ने किसी बड़े शो मैंन से कभी संपर्क ही नहीं साधा।
यही बांसी का माघ मेला है जहां पहले बांसी राज घराने के अस्त्र-शस्त्र,पोशाक,शेर की खाल में भूसा भरकर कृत्रिम शेर आदि की प्रदर्शनी लगाई जाती थी। जिसे दूर दराज के लोग बड़े शौक से देखते थे। अब यह प्रदर्शनी राजघराने की नहीं लगाई जाती। माघ मेला समापन होने के बाद मेले के सभी दुकानदारों और शो मैंनो को अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रशस्ति पत्र दिए जाने का कार्यक्रम होता था। जिससे माघ मेला में आने वाले दुकानदारों और शो मैंनो के उत्साह में वृद्धि होती थी, इस परंपरा को बंद कर दिया गया। माघ मेला मैदान में ही सरकार की उपलब्धियां की जानकारी के लिए तमाम शासकीय स्टॉल लगाए जाते रहे, इसका प्रचलन एक लंबे समय से बंद कर दिया गया। दूरदराज तक माघ मेला के प्रचार प्रसार के लिए बड़े-बड़े पोस्टर न केवल पूरे जनपद बल्कि प्रदेश के कोने-कोने तक लगाए जाते थे। जिससे लोगों को माघ मेला की जानकारी हो, पोस्टर लगाने का काम भी बंद कर दिया गया। माघ मेला लगवाने वाले समाजसेवियों के नाम का एक शिलापट पहले माघ मेला परिसर में ही लगा हुआ था। जिससे लोगों को जानकारी होती थी कि मेला हमारे किन-किन पूर्वजों ने लगाया और योगदान दिया वह शिलापट गायब हो गया, उसे दोबारा नहीं लगाया जा सका। बीच माघ मेला मैदान में जहां पंडित राजेंद्र नाथ त्रिपाठी की प्रतिमा लगी है वहां प्राचीन काल से चार बड़े-बड़े सीमेंट के बेंच थे और उस बेंच और प्रतिमा के बीच में लगभग 30 फीट की गोलाई में सजावट के साथ काफी स्पेस छोड़ा जाता था जिसे माघ मेला का हृदय कहा जाता रहा। उस गोलाई को अब पूरी तरह समाप्त कर दिया गया। जिसे मेला पूरी तरह बदसूरत हो गया। जिस बांसी के माघ मेला ने ही बांसी की पहचान देश के कोने-कोने में फैलाई, उसी माघ मेला को आज उपेक्षा के दौर से गुजरना पड़ रहा है।